यूपी के बहराइच में फिर दहशत: ‘भेड़िये के आतंक से सहमे गाँव, शाम होते ही लोग अपने घरों में कैद होने को मजबूर।

Bahraich Bhediya News

Bahraich Bhediya News: जिले के गाँव-गाँव में इन दिनों रात ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है। चौपालों पर बैठने वाले बुजुर्गों की बातचीत बंद हो गई है, बच्चों का शोरगुल थम गया है और औरतें सूरज ढलने से पहले ही घरों के अंदर दुबक जाती हैं।

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यह कोई नई महामारी नहीं, बल्कि एक पुराना दुश्मन है जो जंगलों से निकलकर अब आबादी की दहलीज पर दस्तक दे रहा है – भेड़िया।

बहराइच का “भेड़िया आतंक” एक बार फिर सुर्खियों में है। पिछले कुछ महीनों में भेड़ियों के हमलों की घटनाओं में खतरनाक इजाफा हुआ है। जहाँ पहले यह जानवर जंगलों और खेतों में ही दिखाई देता था, अब वह सीधे गाँवों में घुसकर मवेशियों को अपना शिकार बना रहा है और कई बार तो इंसानों पर भी हमला करने से नहीं हिचकिचा रहा। प्रशासन की ओर से शिकारियों की टीमें तैनात की गई हैं, लेकिन अब तक इस समस्या पर पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है।

Bahraich Bhediya News- खाना खा रही बच्ची को भेड़िया उठा ले गया।

हाल में फिर एक और मासूम की जान भेड़िये की भेंट चढ़ गई है। भोजन कर रही नन्ही बच्ची को एक भेड़िये ने ऐसे उठा लिया कि परिवार को पता भी नहीं चला। कुछ देर बाद जब बच्ची का शव बरामद किया गया तो उसकी हालत देखकर गाँव वालों के रोंगटे खड़े हो गए।

पिछले कुछ महीनों से भेड़ियों के आतंक से त्रस्त इस गाँव ने आज एक ऐसा जख्म देखा है जो शायद ही कभी भरे। बताया जा रहा है कि बच्ची अपने घर के आँगन में बैठकर खाना खा रही थी। इसी दौरान एक भेड़िया घर में घुसा और उसे मुँह में दबोचकर फुर्ती से वहाँ से भाग गया।

एक पैर गायब, हाथ-पीठ का मांस भी खा गया; बहराइच में लोग घरों में कैद

जब बच्ची के गायब होने की खबर फैली तो पूरे गाँव ने उसे ढूँढना शुरू किया। घने झाड़ियों और खेतों की तलाशी ली जाने लगी। आखिरकार, गाँव से कुछ दूर जंगल के किनारे उस नन्ही बच्ची का शव मिला, लेकिन वह नज़ारा इतना डरावना और दिल दहला देने वाला था कि लोग सदमे में आ गए। भेड़िये ने उस पर ऐसा वार किया था कि उसका एक पैर पूरी तरह से गायब था। उसके छोटे-छोटे हाथों और पीठ का मांस भी जगह-जगह से नोंच खाया हुआ था।

ग्रामीणों का आरोप है कि प्रशासन और वन विभाग उनकी सुरक्षा के प्रति लापरवाही बरत रहा है। वन विभाग द्वारा शिकारियों को तैनात करने के वादे के बावजूद, भेड़ियों का आतंक थमने का नाम नहीं ले रहा है। ग्राम प्रधान ने बताया कि उन्होंने मामले की तुरंत सूचना वन विभाग और पुलिस को दी है, लेकिन अब तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।

यह घटना एक चेतावनी है कि बहराइच का भेड़िया आतंक अब महज मवेशियों तक सीमित नहीं रह गया है। यह सीधे तौर पर इंसानों, खासकर बच्चों के लिए खतरा बन गया है। जरूरत इस बात की है कि प्रशासन त्वरित और कड़ी कार्रवाई करे, नहीं तो अगला शिकार कौन होगा, कोई नहीं जानता। आज पूरा बहराइच एक मासूम बच्ची की असामयिक मौत पर सिसकियाँ भर रहा है और अपने भविष्य को लेकर सहम गया है।

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क्यों बढ़ रहा है भेड़ियों का आतंक? एक नज़र वजहों पर

भेड़ियों का इस तरह आबादी की ओर रुख करने के पीछे कई कारण हैं। पर्यावरणविद और वन विभाग के अधिकारी मान रहे हैं कि यह कोई एकाएक हुई घटना नहीं, बल्कि लंबे समय से चले आ रहे पर्यावरण असंतुलन का नतीजा है।

  • जंगलों का सिकुड़ना: तराई का इलाका होने के कारण बहराइच में कभी घने जंगल हुआ करते थे। लेकिन बढ़ती आबादी और अतिक्रमण के चलते जंगलों का दायरा लगातार सिकुड़ता जा रहा है। भेड़ियों के प्राकृतिक आवास और शिकार दोनों पर इसका सीधा असर पड़ा है। उनके शिकार, जैसे जंगली सूअर, खरगोश आदि, की संख्या भी कम हुई है, जिसके चलते भेड़िये भोजन की तलाश में मानव बस्तियों की ओर रुख करने को मजबूर हैं।
  • खुले पड़े कचरे के ढेर: गाँवों के आस-पास और खेतों के किनारे लगे कचरे के ढेर भी इन जानवरों को आकर्षित कर रहे हैं। यहाँ मिलने वाला भोजन उनके लिए एक आसान शिकार का काम करता है, जिससे उनकी मानव बस्तियों पर निर्भरता बढ़ती जा रही है।
  • मवेशियों का बेखौफ चरना: ग्रामीण अक्सर अपने मवेशियों को चराने के लिए जंगल के किनारे या खुले मैदानों में छोड़ देते हैं, जहाँ वे भेड़ियों के लिए एक आसान लक्ष्य बन जाते हैं। बकरियाँ, भेड़ें और छोटे बछड़े उनके पसंदीदा शिकार हैं।

ग्रामीणों की आवाज: “सरकार सुनें हमारी फरियाद”

हमने जब इस मामले पर ग्रामीणों से बात की, तो उनकी आँखों में डर के साथ-साथ गुस्सा भी साफ झलक रहा था।

किसान रामसिंह (45), जिनकी दो बकरियाँ एक रात भेड़िये की भेंट चढ़ गईं, कहते हैं, “ये कोई नई बात नहीं है। साल-दर-साल यही हाल है। जाड़े की शुरुआत होते ही ये दरिंदे हमला करना शुरू कर देते हैं। हमने वन विभाग को कितनी बार खबर की, लेकिन कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई। अब तो हम रात को खुद भी घर से बाहर नहीं निकलते।”

गृहिणी सीता देवी (38) का कहना है, “पहले तो बच्चों को शाम ढलने से पहले घर बुला लेते थे, अब तो दिन में भी डर लगता है। अगर ये जानवर कभी बच्चे पर हमला कर दे तो? हमारी सुरक्षा का इंतज़ाम करे।”

युवा प्रधान, अजय यादव, ने प्रशासन पर सुस्ती का आरोप लगाते हुए कहा, “हमने collective representation (सामूहिक प्रतिनिधित्व) भी किया है। कहते हैं कि शिकारी बुलाएँगे, लेकिन ये शिकारी आते कब हैं? और आते भी हैं तो एक-दो दिन रुककर चले जाते हैं। भेड़िया तो smart (चालाक) होता है, वह भाग जाता है और फिर लौट आता है। जब तक इनकी पूरी तरह से घेराकर खोज नहीं की जाएगी, तब तक इस समस्या का समाधान नहीं होगा।”

वन विभाग की चुनौतियाँ और कार्रवाई

वन विभाग भी Bahraich Bhediya की चुनौती से अवगत है। बहराइच के DFO (डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर) श्री राजेश कुमार ने बताया, “हमें ग्रामीणों की चिंता समझ आ रही है। यह एक गंभीर मामला है और हम इस पर पूरी गंभीरता से काम कर रहे हैं।”

उन्होंने बताया कि विभाग की ओर से कई कदम उठाए जा रहे हैं:

  • शिकारी टीमों की तैनाती: भेड़ियों के आतंक वाले इलाकों में विशेष शिकारियों की टीमें तैनात की गई हैं। इन टीमों को भेड़ियों के ठिकानों का पता लगाने और उन्हें पकड़ने या भगाने का काम सौंपा गया है।
  • ट्रैकिंग और निगरानी: वनकर्मी लगातार ग्रामीण इलाकों का दौरा कर रहे हैं और भेड़ियों के पैरों के निशान (pugmarks) और movement (गतिविधि) पर नजर रखे हुए हैं।
  • ग्रामीणों को जागरूक करना: विभाग की ओर से ग्रामीणों को सलाह दी जा रही है कि वे शाम ढलने के बाद अपने मवेशियों को खुले में न छोड़ें। पशुओं के बाड़ों (छप्पर) को मजबूत करें और अगर भेड़िया दिखे तो तुरंत वन विभाग के हेल्पलाइन नंबर पर सूचना दें।

हालाँकि, DFO ने यह भी स्वीकार किया कि जंगलों के सिकुड़ने और ecological imbalance (पारिस्थितिक असंतुलन) की वजह से यह समस्या पैदा हुई है, जिसका त्वरित समाधान आसान नहीं है।

क्या है कानूनी पहलू? भेड़िये को मारना है जुर्म

एक अहम मोड़ यह है कि भेड़िया भारती वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 की अनुसूची में शामिल एक संरक्षित प्रजाति है। इसका मतलब यह है कि आम आदमी के लिए भेड़िये को मारना कानूनन अपराध है। केवल वन विभाग के अधिकारी ही, विशेष परिस्थितियों में और आवश्यक अनुमति लेकर, ही इस तरह की कार्रवाई कर सकते हैं।

यह कानूनी पाबंदी ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ा देती है। वे जानवर को देखकर भी उसे भगाने के अलावा कुछ नहीं कर सकते, जबकि भेड़िया एक ऐसा जानवर है जो बार-बार लौटकर आता है। इससे ग्रामीणों में frustration (निराशा) की भावना पैदा हो रही है।

पर्यावरणविदों का पक्ष: दोषी भेड़िया नहीं, इंसान है

पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि भेड़िये को दानव बताना गलत है। वह केवल अपने अस्तित्व और भोजन की तलाश में ऐसा कर रहा है। दोष हम इंसानों का है, जिन्होंने उसके natural habitat (प्राकृतिक आवास) को नष्ट कर दिया।

वाइल्डलाइफ एक्सपर्ट डॉ. अमिताभ घोष कहते हैं, “भेड़िया ecosystem (पारिस्थितिकी तंत्र) का एक अहम हिस्सा है। वह कृषि के लिए हानिकारक जानवरों like wild boar (जंगली सूअर) आदि का शिकार करके फसलों को नुकसान होने से बचाता है। समस्या का स्थायी समाधान उनके आवासों का संरक्षण, wildlife corridor (वन्यजीव गलियारों) का विकास और ग्रामीणों के साथ मिलकर conflict mitigation (संघर्ष कम करने) के उपाय ढूँढना है। केवल शिकार करने से समस्या हल नहीं होगी, बल्कि और गंभीर हो सकती है।”

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Bahraich Bhediya Newsग्रामीणों के लिए जरूरी सुझाव और सुरक्षा उपाय

इस बीच, ग्रामीणों को अपनी सुरक्षा स्वयं करने के लिए कुछ उपाय अपनाने की सलाह दी जा रही है:

  1. मवेशियों को सुरक्षित स्थान पर रखें: रात के समय मवेशियों को मजबूत बाड़े में बंद करके रखें। बाड़े के चारों ओर अच्छी रोशनी की व्यवस्था करें।
  2. कचरा प्रबंधन: गाँव के आस-पास कचरे के ढेर न लगने दें। कचरे को ढककर रखें ताकि वह भेड़ियों को आकर्षित न करे।
  3. सामूहिक सतर्कता: गाँव के युवा रात में पहरा दे सकते हैं। अगर भेड़िया दिखे तो ढोल-नगाड़े बजाकर, टॉर्च जलाकर या आवाज़ें करके उसे भगाया जा सकता है।
  4. अकेले न निकलें: शाम के बाद, खासकर महिलाओं और बच्चों को अकेले निकलने से बचना चाहिए।
  5. तत्काल सूचना: भेड़िया दिखने या हमला होने की स्थिति में तुरंत वन विभाग के हेल्पलाइन नंबर या स्थानीय प्रशासन को सूचित करें।

Bahraich Bhediya आतंक: सह-अस्तित्व की जरूरत

बहराइच का भेड़िया आतंक कोई isolated (अलग-थलग) घटना नहीं है। यह एक warning bell (चेतावनी) है जो हमें प्रकृति के साथ हमारे बिगड़ते रिश्ते की याद दिलाती है। जंगल सिकुड़ेंगे, तो जंगली जानवर आबादी में आएँगे ही। केवल भेड़ियों को मारकर या पकड़कर इस समस्या का स्थायी हल नहीं निकाला जा सकता।

जरूरत इस बात की है कि प्रशासन, वन विभाग, पर्यावरणविद और ग्रामीण मिलकर एक comprehensive plan (व्यापक योजना) बनाएँ। जिसमें जंगलों के संरक्षण, वन्यजीव गलियारों के निर्माण, ग्रामीणों को मवेशियों के नुकसान का त्वरित और उचित मुआवजा, और modern conflict management techniques (आधुनिक संघर्ष प्रबंधन तकनीकों) पर काम किया जाए।

तब तक, बहराइच के गाँवों में रात की दहशत बनी रहेगी और ग्रामीणों का डर उनके सपनों पर हावी रहेगा। आखिरकार, इंसान और जानवर दोनों का इस धरती पर अधिकार है, बस जरूरत है तो सही तालमेल और सह-अस्तित्व बनाने की।


©द नेशन स्टोरी, 2025 (The Nation Story)
पारदर्शिता के प्रति प्रतिबद्ध

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