ख़ैराबाद की ताज़ियादारी
Khairabad Ki Taziyadari -पूरी दुनिया में मुहर्रम का महीना बहुत अक़ीदत और एहतराम से मनाया जाता है। इस महीने में हज़रत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हुए लोग अपने ग़मों का इज़हार करते हैं। मुहर्रम के महीने में ताज़ियादारी भी एक अहम धार्मिक और सांस्कृतिक परंपरा बन चुकी है, जो न सिर्फ़ मुसलमानों बल्कि कई ग़ैर-मुस्लिमों के लिए भी आस्था और सम्मान का प्रतीक है।
क्या होता है ताज़िया?
ताज़िया एक ऐसी प्रतीकात्मक रचना होती है जो इमाम हुसैन की मज़ार की नकल मानी जाती है। इसे ज़्यादातर बाँस की लकड़ी, थर्माकोल के साथ ही सादे और चमकदार कागज़ से तैयार किया जाता है । ताज़िया बनाने में इस की ख़ूबसूरती का ख़ास ख़्याल रखा जाता है। लोग इसे अपने घरों के ‘अज़ाखाने’ (एक अस्थाई इमामबाड़ा) में रखते हैं। यह एक तरह का पारंपरिक कारीगरी वाला पेशा भी है। ताज़िया बनाने वाले कारीगर महीनों की मेहनत से इसे बनाते हैं और बाज़ार में बेचते हैं। ताज़िए की क़ीमत उसकी डिज़ाइन, आकार और कारीगरी पर निर्भर करती है।
ताज़िया और ज़रीह में क्या फर्क है?
जहाँ सुन्नी समुदाय इसे ताज़िया कहते हैं, वहीं शिया समुदाय में ‘ताज़िया’ और ‘ज़रीह’ दोनों शब्द चलते हैं। तकनीकी तौर पर दोनों एक जैसे होते हैं लेकिन ताज़िया में आमतौर पर नुकीले गुंबद होते हैं, जबकि ज़रीह में गोलाकार गुंबद और स्तंभ होते हैं। इनकी नींव की आकृति भी अलग होती है – ताज़िया एक आयताकार प्लेटफॉर्म पर रखा जाता है, जबकि ज़रीह चौकोर आधार पर बनाई जाती है।
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Khairabad Ki Taziyadari : सालों पुरानी गंगा-जमुनी तहज़ीब की मिसाल.
ख़ैराबाद, जो सदियों से अपनी गंगा-जमुनी तहज़ीब के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है, Khairabad Ki Taziyadari भी पूरे देश में हिंदू मुस्लिम एकता की एक अनोखी मिसाल मानी जाती है। मान्यता है कि यहां ताज़ियादारी की शुरुआत करीब 800 साल पहले सूफ़ी संत हज़रत यूसुफ़ ख़ान ग़ाज़ी (र०अ०) ने की थी।
मुहर्रम की पहली तारीख़ से लेकर आशूरा ( मुहर्र्म महीने की 10वीं तारीख़) और उससे भी आगे, ख़ैराबाद के हर गली-मोहल्ले से ताज़िए उठाए जाते हैं, जिनमें हिन्दू और मुसलमान सभी मिलकर भाग लेते हैं। पूरे दो महीने और आठ दिन तक यह छोटा कस्बा मोहब्बत, भाईचारे और श्रद्धा से सराबोर रहता है।
ख़ैराबाद के कुछ प्रमुख और अनोखे ताज़िए
वैसे तो पूरे क़स्बे में बहुत तरह के ताज़िये रखे जाते हैँ लेकिन इन में कुछ ताज़िये काफ़ी मशहूर हैं, इन में से कोई ताज़िया अपनी ख़ास बनावट के लिए तो कोई अपनी जगह या रखने वाले शख्स की वजह से मशहूर है। Khairabad Ki Taziyadari में से कुछ ख़ास ताज़िये इस तरह हैं: –
52 डंडों वाला ताज़िया ( बूढ़े बाबा का ताज़िया):
ख़ैराबाद का सबसे प्रसिद्ध ताज़िया है ‘बावन डंडों वाला ताज़िया‘ जिसे ‘बूढ़े बाबा का ताज़िया’ भी कहा जाता है। यह क़स्बे के 52 अलग-अलग मोहल्लों (हिन्दू, शिया, सुन्नी) से लकड़ी के डंडे लाकर बनाया जाता है। इसमें से 20 डंडे बाहर और 32 अंदर लगाए जाते हैं।
माना जाता है कि ये ताज़िया ख़ैराबाद के हर मुहल्ले और हर सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करता है । जहाँ पूरी दुनिया में जहाँ भी ताज़ियादारी होती है ताज़िये 10 मुहर्रम को क़र्बला में दफ़्न होते हैँ वहीं 52 डंडे का ताज़िया 10 मुहर्रम को नहीं बल्कि मुहर्रम की 11 तारीख़ को कर्बला में दफ़्न किया जाता है। उस दिन लाखों की संख्या में लोग इसे देखने और ज़ियारत के लिए ख़ैराबाद की कर्बला पहुंचते हैं।
वाली मियाँ का ताज़िया
यह ताज़िया ललियापुर मोहल्ले की कमेटी द्वारा उठाया जाता है।
काला ताज़िया
यह पुराना और अनोखा ताज़िया पूरी तरह काले रंग में होता है, इसलिए इसे ‘काला ताज़िया’ कहा जाता है। यह पटाओ मोहल्ले से उठाया जाता है।
बग़लन ताज़िया
मियाँ सराय मोहल्ले से उठाया जाने वाला यह ताज़िया अपनी नायाब कारीगरी के लिए जाना जाता है।
क़लंदर मियाँ का ताज़िया
शेख़ सरांय मोहल्ले से उठाया जाता है, इसका नाम स्थानीय सूफ़ी संत हज़रत मक़बूल अनवर क़लंदर के नाम पर पड़ा है।
परी ताज़िया:
यह अपनी खास डिज़ाइन के कारण चर्चित है जिसमें परी जैसी आकृति बनाई जाती है। यह मोहल्ला महेन्द्री टोला से उठाया जाता है।
नाव नवड़िया और मोती वाला ताज़िया
दोनों महेन्द्री टोला से उठाए जाते हैं। नाव नवड़िया नाव के आकार में होता है और मोती वाला ताज़िया मोतियों से सजाया जाता है।
मनौती ताज़िया
बाज़दारी टोला से उठाया जाने वाला यह ताज़िया श्रद्धालुओं की मुराद पूरी होने पर उठाया जाता है। खैराबाद से क़रीब 71 प्रमुख ताज़िए हर साल उठाए जाते हैं, जिनके साथ और भी सैकड़ों छोटे-बड़े ताज़िए निकलते हैं।
Khairabad Ki Taziyadari क्यों है खास?
- सांप्रदायिक सौहार्द की मिसाल – हिन्दू और मुसलमान (शिया और सुन्नी) मिलकर उठाते हैं ताज़िए
- सदियों पुरानी कारीगरी – हर ताज़िया एक अनोखी कारीगरी का उदाहरण
- आस्था और सम्मान का संगम – ग़ैर-मुस्लिम भी पूरी श्रद्धा से हिस्सा लेते हैं
- देशभर से श्रद्धालु – खासकर 11 मुहर्रम को कर्बला में लाखों की भीड़ उमड़ती है
खैराबाद जैसे कस्बे अपने अमन और भाईचारे की परंपरा से पूरी दुनिया को यह संदेश देते हैं कि मज़हब इंसान को जोड़ता है, तोड़ता नहीं। Khairabad Ki Taziyadari सिर्फ़ एक धार्मिक रस्म नहीं बल्कि एक सामाजिक संगम है जहाँ आस्था, कारीगरी और इंसानियत की झलक मिलती है।
©द नेशन स्टोरी, 2025 (The Nation Story)
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